9-2-11

का पता बदल गया है। यहाँ पर जारी:

http://devanaagarii.net/hi/alok/blog/

अलबत्ता, पुराने लेख यहीं मिलेंगे:

शुक्रवार, नवंबर 28, 2003 00:04
 
समय आ गया है कि ब्लॉग्स्पॉट को अलविदा कही जाए, वैसे कोई शिकायत तो नहीं है यहाँ, । तो मिलते हें इस

नए पते

पर।
सोमवार, नवंबर 24, 2003 11:02
 
ताज़ी ख़बर यह है कि विण्डोज़ का हिन्दी इण्टर्फ़ेस पॅक आ गया है, बल्कि 11 नवम्बर से आया पड़ा है। पर इसके लिए ऍक्स पी का सर्विस पॅक 1 चाहिए, या फिर होम ऍक्स पी चाहिए। तो कहीं से जुगाड़ा जाए।
शुक्रवार, नवंबर 21, 2003 13:48
 
कल बैठ के ए पी यू ई के दो अध्यायों के अभ्यास पूरे किए। काफ़ी समय बाद। आज करूँगा फ़ाइल हॅण्ड्लिङ्ग। गाड़ी आगे बढ़ रही है, अच्छा है।
बुधवार, नवंबर 19, 2003 07:06
 
bmake तो मिल गया। अब पता लगाना है कि ये realpath क्या है? बीमेक तो इसे शॅल निर्देश मान कर चल रहा है जबकि यह है तो सी फ़ङ्क्शन।
रविवार, नवंबर 16, 2003 10:19
 
डॉकबुक, ऍस जी ऍम ऍल

अब समय आ गया है कि इन चीज़ों के बारे में और खोजबीन की जाए। नहीं तो काम आगे नहीं बढ़ेगा। अर्सा हो गया इण्डिक कम्पुयूटिङ्ग का काम किए। मेक फ़ाइल में .include का क्या मतलब होता है? इसपर ही त्रुटि आ रही है। missing separator. Stop. भइया स्टॉप तो हम नहीं करने वाले, पता लगा के ही छोड़ेंगे।
शनिवार, नवंबर 15, 2003 13:26
 
गूगल को संस्कृत में अनूदित करने के लिए काम शुरू किया, संस्कृत के कुछ विद्वानों की मदद से। उनका बहुत आभारी हूँ। लेकिन चक्कर यह है कि संस्कृत अनुवाद करने के लिए पन्नों को यूटीऍफ़ ८ कूटबन्धन में होना चाहिए। यह सुविधा गूगल में है नहीं। इसके बारे में मैने गूगल.पब्लिक.ट्रांस्लेटर्स पर भी लिखा लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया। और क्या किया जा सकता है?
बुधवार, नवंबर 05, 2003 21:21
 
अर्सा हो गया लिखे। हर रोज वही कहानी, समय की कमी।
बीबीसी पर भारतीय मध्यम वर्ग के बारे में कुछ लेख हैं, हर ललक पूरी करने की लालसा। काफ़ी सटीक और सामयिक।

गुरुवार, अक्तूबर 23, 2003 19:39
 
हिन्दुस्तान में जगहों के नाम, हिन्दी और अन्य भाषाओं में। और सिर्फ़ हिन्दुस्तान के ही नहीं, और जगहों के नाम, उन उन भाषाओं में। काफ़ी मेहनत की है बन्दे ने।
मंगलवार, अक्तूबर 21, 2003 13:02
 
और जवाब भी आ गया। उनका कहना है कि समाचार वाली सेवा सिर्फ़ अङ्ग्रेज़ी में है, जब और भाषाओं में होगी तो इनको भी जोड़ देंगे। बढ़िया है। पी सी पर 64 बिट के प्रॉसॅसर आने वाले हैं, क्या गुल खिलेगा उनसे? वैसे मुझे लगता है कि हिन्दुस्तान में कम से कम अन्तर्जाल की गति बढ़ाना ज़्यादा ज़रूरी है बजाय अपने अपने सङ्गणकों की।
सोमवार, अक्तूबर 20, 2003 18:20
 
आज मैंने बड़े दिनों के बाद गूगल भइया को चिट्ठी लिखी।

मान्यवर,
आपसे अनुरोध है कि इन स्रोतों को भी अपनी खोज में शामिल करें,

बीबीसी हिन्दी
सहारा समय
पी टी आई भाषा

ये सभी UTF-8 कूटबन्धन में हैं।
फ़िलहाल क्रिकेट पर खोज करने पर कुछ नहीं मिलता।

जबकि जालपृष्ठों पर तो आपको मसला मिलता है।

आलोक।



रविवार, अक्तूबर 19, 2003 23:54
 
फ़िल्म देखी, रूल्स, प्यार का सुपर्हिट फ़ॉर्मुला। बढ़िया है, मज़ेदार। वैसे लोग प्यार का फ़ॉर्मुला ढूँढते ढूँढते उसी निष्कर्ष पर पहुँचे हैं जो हमें पहले से ही मालूम है। ज़्यादातर सामाजिक अनुसन्धान ऐसी ही बातें पता लगाते हैं जो हमें पहले से ही मालूम होती हैं, जैसे कि टी वी देखने से आँखों पर असर पड़ता है, स्वादिष्ट चीज़ों को खाने से बीमारियाँ होती हैं, या घर पर बच्चों पर ध्यान न देने से उनकी पढ़ाई पर बुरा असर होता है। ऐसे अन्वेषणों पर करोड़ों रुपए खर्च करने से पहले हमीं से पूछ लेते।
 
दाँतों में दर्द, सुना है कि जब होता है तो बहुत ज़बर्दस्त होता है, जल्दी से नौ दो ग्यारह नहीं होता। वैसे अपने को तो ऐसा कुछ कभी हुआ नहीं, शुक्र है खुदा को।
शुक्रवार, अक्तूबर 17, 2003 17:00
 
मोज़िला फ़ायर्बर्ड का नया उद्धरण, 0.7 आ गया है। ताज्जुब की बात यह है कि इसका आकार पिछले वाले, 0.6.1 से कम है, ज़्यादा नहीं।
गुरुवार, अक्तूबर 16, 2003 23:52
 
लिनक्स परिचय पर काम चल रहा है, धीरे धीरे। उम्मीद है कि प्लान के मुताबिक अक्तूबर के अन्त तक खत्म हो जाएगा। आज एक सरल पन्ना चढ़ाया।
बुधवार, अक्तूबर 15, 2003 17:58
 
लिनक्स पर ओपन टाइप मुद्रलिपियों के साथ मोज़िला? इण्डिक्स के साथ तो मैंने किया हुआ है यह काम, लेकिन यह तो कुछ अलग ही चीज़ है, और बढ़िया है। इण्डिक्स में आप केवल एक ही मुद्रलिपि एक ऍक्स सत्र में प्रयुक्त कर सकते हैं लेकिन इसमें कोई सीमा नहीं है। साथ ही इण्डिक्स में मोटे व तिरछे अक्षर नहीं आते। इसको चला के देखना है। वैसे निर्माण की चर्चा हुई थी, लेकिन यह अभी मोज़िला के तने में नहीं पहुँचा है।
मंगलवार, अक्तूबर 14, 2003 17:44
 
पता चला है कि कुछ लोग अपने दोस्तों को हिन्दी सिखा रहे हैं।बढ़िया है। मज़ेदार है।
गुरुवार, अक्तूबर 09, 2003 23:20
 
भई, यह कविता, बुनते सपने बिखरते सपने तो बढ़िया है। पहले इस पन्ने पर केवल पी डी ऍफ़ प्रारूप में ही कविताएँ थीं, अब ऍच टी ऍम ऍल में भी हैं। रवि रतलामी जी, धन्यवाद।
बुधवार, अक्तूबर 08, 2003 23:22
 
आई ऍस डी ऍन कनॅक्शन! सोचा, अब तो मज़ा आएगा। लेकिन कुछ ब्लास्टर वाइरस की वजह से कुछ ब्राउज़िङ्ग ही नहीं हो पा रही। तो वापस डायलप पर, साथ ही ३१.९ मॅगाबाइट सुरक्षा पॅच लगा रहा हूँ आज रात। समझ ही गए होंगे कि मैं आजकल विण्डोज़ पर काम कर रहा हूँ। भई आजकल अपने शहर से नौ दो ग्यारह हूँ। दूसरे सङ्गणक से काम कर रहा हूँ।
मंगलवार, अक्तूबर 07, 2003 00:10
 
आजकल जब लोग रेल्वे प्लॅट्फ़ार्म पर किसी को लेने जाते हैं तो हाथ में फूल या गुलदस्ता ले के आते हैं। ज़माना था जब आस्तीनें ऊपर चढ़ा के पहुँचते थे, ताकि सामान तुरन्त उठा के वहाँ से नौ दो ग्यारह हों। ज़माना बदल रहा है।
सोमवार, अक्तूबर 06, 2003 00:17
 
तख्ती है तो बढ़िया, लेकिन कुछ त्रुटियाँ मिलीं। मैं काम कर रहा हूँ विण्डोज़ ऍक्स पी पर, बिना लॅङ्ग्वॅज पॅक के।



रविवार, अक्तूबर 05, 2003 16:18
 
कल रात बैठ कर लिनक्स परिचय का यह पन्ना पूरा किया। इसमें काफ़ी त्रुटियाँ हैं, पर फ़िलहाल उन्हें ठीक नहीं किया है। वैसे अपना लक्ष्य था ३० अक्तूबर तक अनुवाद को खत्म करना। मेरा पूरा विश्वास है कि यह तो हो जाएगा, आप सबकी मदद से। इस बीच पता चला कि सरोवर में प्रवेश के लिए कुछ विशेष कदम उठाने पड़ते हैं, यह सोर्स्फ़ोर्ज की तरह नहीं है। दिल्ली की मॅट्रो रेल अच्छी तरक्की कर रही है, बढ़िया है।
शनिवार, अक्तूबर 04, 2003 09:03
 
इण्टर्नेट पर शादी का तो यह एक व्यङ्ग्यात्मक रूप है। वैसे कुछ लोगों का कहना है कि सभी शादियाँ व्यङ्ग्यात्मक होती हैं। आपका क्या ख़याल है?
शुक्रवार, अक्तूबर 03, 2003 07:25
 
मिस तिब्बत की प्रतियोगिता में सिर्फ़ एक प्रतियोगी, और वह विजयी घोषित हुई। बौद्धों को स्विम्सूट वाली प्रतियोगितोएँ पसन्द नहीं हैं। अग़र यही बात है तो इसका आयोजन कौन कर रहा है? उन्हीं के नेता न। यह बात तो कुछ हज़म नहीं हुई। नौ दो ग्यारह ही हो जाएगी यह प्रतियोगिता। वैसे स्विमसूट पहनने के लिए एक लाख रुपए मिलने वाली प्रतियोगिता समझ में नहीं आई। न ही यह बात कि तिब्बत का अधिकारिक स्थल यूनिकोडित नहीं है। पर ल्हासा में मौसम अच्छा होगा आजकल, ८ डिग्री सॅल्सियस।
गुरुवार, अक्तूबर 02, 2003 17:48
 
गीता प्रेस सन् १९२३ से चल रही है। स्थापना की श्री जयदयालजी गोयनका ने। वैसे मैंने इन्हें पत्र भी लिखा था, पर कोई जवाब नहीं आया। इनका सबसे ज़्यादा छपने वाला मसला है स्त्री एवं बालोपयोगी साहित्य, कुल ८ करोड़ ४० लाख प्रतियाँ छप चुकी हैं। मानना पड़ेगा। इतना ही नहीं, तेलुगु, गुजराती, अङ्ग्रेज़ी, तमिल, उड़िया, बाङ्ग्ला, असमिया, कन्नड़, व मराठी में भी यह छाप चुके हैं। मानना पड़ेगा।
१९९९-२००० साल में कुल १४ करोड़ का तो धन्धा ही हुआ था, और इसके लिए ३१ लाख किलो कागज़ खर्च हुआ। तीन साल पुरानी जानकारी है स्थल पर, यानी तब से स्थल को परिवर्तित नहीं किया है? पर स्थल बढ़िया है।
हिन्दी और अङ्ग्रेज़ी में रामायण, गीता, और कई अन्या पी डी ऍफ़ प्रारूप में उपलब्ध हैं, आप अधिभारित यानी डाउन्लोड कर सकते हैं और छाप भी सकते हैं। वैसे, इनको ऍच टी ऍम ऍल प्रारूप में भी रखा जा सकता था। गूगल तुरन्त उठा लेता। वैसे गूगल तो पीडी ऍफ़ को भी उठा ही लेता है।
 
इंस्क्रिप्ट की इतनी आदत पड़ चुकी है कि तख़्ती पर भी इंस्क्रिप्ट में ही लिखने में ज़्यादा सुहूलियत लगती है। वैसे क्या आपने ने किसी और लिपि के लिए तख़्ती का कुञ्जी चित्र यानी कीमॅप बनाया है? काम की चीज़ है।
सोमवार, सितंबर 29, 2003 23:24
 
क्या सङ्गणकों की वजह से इंसान को सचमुच आम जीवन में व्यवस्थित रह पाने में सफलता मिली है? मुझे तो नहीं लगता, यानी कम से कम मुझे तो नहीं हुई है। मैं तो अब भी उतना ही भुलक्कड़ और बेतरतीब हूँ जितना पहले था। पहले सोचता था कि मैं सभी दोस्तों के पते और जन्मदिन अपने पास फ़ाइल में रखूँगा, सबसे सम्पर्क बना के रखूँगा, सबको डाक कभी भी भेज सकता हूँ, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। आपके क्या अनुभव हैं? बल्कि उल्टे अन्तर्जाल भी एक दुर्व्यसन की तरह ही हो गया है। अब तो जीवन उसी के इर्द गिर्द घूमता है, बजाय जीवन को सुहूलियत देने के, सङ्गणक के चारों ओर ही सभी काम होते हैं। इसीलिए शायद पिताजी इसे इन्द्रजाल का नाम देते हैं! वैसे मैं बड़े दिनों से हिन्दी में एक और चिट्ठा ढूँढ रहा हूँ लेकिन कोई मिला नहीं। क्या आप में से किसी का इरादा नहीं है? अब जब सङ्गणक के ग़ुलाम बन ही चुके हैं तो पूरी तरह ही बनते हैं न। अब तो नौ दो ग्यारह होने का सवाल ही नहीं पैदा होता।
 
हर रोज़ नई कहानी। हर रोज की एक नई समस्या। क्या करें, मन तो करता है कि नौ दो ग्यारह हो जाएँ, लेकिन नहीं हो पाते। प्राथमिक उपचार के बारे में एक स्थल मिला है। अच्छा है। ऐसे स्थल और होने चाहिए, और ऐसे वाले भी।
गुरुवार, सितंबर 25, 2003 19:54
 
कई बार यह गाना सुना है, और अच्छा भी लगता है, लेकिन कभी ध्यान से इसके बोल नही सुने, कल के पहले।

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी, हैरान हूँ मैं
ओ हैरान हूँ मैं
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं
ओ परेशान हूँ मैं

जीने के लिये सोचा ही न था, दर्द सम्भालने होंगे
मुस्कुराऊँ तो, मुस्कुराने के कर्ज़ उठाने होंगे
मुस्कुराऊँ कभी तो लगता है
जैसे होंठों पे कर्ज़ रखा है
तुझसे ...

आज अगर भर आई हैं, बूँदें बरस जायेंगी
कल क्या पता इनके लिये आँखें तरस जायेंगी
जाने कहाँ गुम कहाँ खोया
एक आँसू छुपाके रखा था
तुझसे ...

ज़िन्दगी तेरे ग़म ने हमें रिश्ते नये समझाये
मिले जो हमें धूप में मिले छाँव के ठंडे साये

ओ तुझसे ...

मुस्कुराऊँ कभी तो लगता है जैसे होठों पे कर्ज़ रखा है, कमाल है। कुछ व्यक्त करना तो कला ही है, कौन सोच सकता था कि इस जज़्बात को इस तरह से भी ज़ाहिर किया जा सकता है? मुस्कुराऊँ कभी तो लगता है जैसे होठों पे कर्ज़ रखा है। जाने कहाँ गुम, कहाँ खोया, एक आँसू छुपाके रखा था। कमाल है।



सोमवार, सितंबर 22, 2003 14:33
 
गुजराती की कुछ मुद्रलिपियाँ मिली हैं, माइक्रोसॉफ़्ट की श्रुति के अलावा यही दिखी है। अभी तक गुजराती की कोई मुक्त मुद्रलिपि नहीं थी, वैसे मुझे यह नहीं पता है कि यह मुद्रलिपियाँ कौन से अनुमति पत्र के तहत वितरित की गई हैं। न ही मैं इनकी जाँच कर पाया, क्योंकि मुझे गुजराती लिखनी नहीं आती, इसलिए संयुक्ताक्षरों के बारे में मुझे पता नहीं चल पाएगा।
गुरुवार, सितंबर 18, 2003 13:02
 
सिर दर्द, सिर दर्द। मतलब नींद पूरी नहीं हुई, या ऑक्सीजन की कमी है। तो क्या किया जाए? आराम करना चाहिए। जब ब्लॉग लिखने बैठते हैं तो बहुत सुकून मिलता है, ऐसा लगता है कि हमारे पास बहुत समय है, तभी हम यह सब कर पा रहे हैं। वैसे इस बहाने मैं कुछ हिन्दी तो लिख पाता हूँ। अच्छी बात है। सराय की एक कार्यशाला है हिन्दी अनुवाद के बारे में, दिल्ली में। लेकिन मैं नहीं जा पाऊँगा उसमें। अपनी दिलचस्पी के काम कभी हो ही नहीं पाते। नौ दो ग्यारह होते हैं और सिर दर्द का इलाज ढूँढते हैं।
शुक्रवार, सितंबर 12, 2003 07:55
 
काम,काम,काम, बहुत काम है। क्या करें, क्या न करें पता नहीं चलता। लगता है छुट्टी ही ले लूँगा। किस्सा खत्म।
गुरुवार, सितंबर 11, 2003 21:26
 
मूवेबल टाइप कुछ बढ़िया चीज़ ही होगी, क्योकि कई स्थल इसकी मदद से बने हैं, और इसका हिन्दीकरण करने में काफ़ी मज़ा आना चाहिए
शुक्रवार, सितंबर 05, 2003 08:13
 
हर रोज़ इतनी ठण्ड होती है कि गर्दन पिछले एक हफ़्ते से अकड़ी ही हुई है। अब तो यह खत्म होगी दो तीन महीने में ही। अधिकतर लोग यही समझते हैं कि जब तक आपके पास इण्टर्नेट ऍक्स्प्लोरर न हो आप हिन्दी देख ही नहीं सकते। जबकि यह सही नहीं है। लेकिन इतना भी निश्चित है कि माइक्रोसॉफ़्ट की कृतियाँ इस मामले में कहीं आगे हैं। और बाकी उनकी नकल कर रहे हैं। ग्नू मुक्त प्रलेखन अनुमतिपत्र के हिन्दी अनुवाद के बारे में कुछ टिप्पणियाँ और सुझाव आए हैं, कि इसमें सुधार की आवश्यकता है।
गुरुवार, सितंबर 04, 2003 07:57
 
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने मदन मोहन मालवीय के बारे में लेख इकट्ठे किए हैं। वैसे, मैंने सुना है कि वह जब विदेश गए थे तो उसके बाद प्रायश्चित किया था, क्योंकि समुद्र यात्रा करना पाप माना जाता है? यह बात कुछ हज़म नहीं हुई।
बुधवार, सितंबर 03, 2003 07:39
 
एक और शब्दकोष मिला है, इस बार है बाल शब्दकोश। किसी भी शब्द का कई भाषाओं में अर्थ प्रदान करता है।
मंगलवार, सितंबर 02, 2003 00:23
 
एक जर्मन से हिन्दी और हिन्दी से जर्मन शब्दकोष मिला है। इसके सङ्कलनकर्ताओं में एक हैं अर्न्स्ट ट्रॅमॅल, जिन्होंने शिदेव मुद्रलिपि भी बनाई है।
सोमवार, सितंबर 01, 2003 07:54
 
मोज़िला में मैं जैसे ही गायत्री मन्त्र वाले पन्ने पर जाने की कोशिश करता हूँ वह नौ दो ग्यारह हो जाता है। तो क्या मोज़िला नास्तिक है?
रविवार, अगस्त 31, 2003 14:58
 
अभिषेक कुमार, भारतीय प्राविधिक संस्थान, कानपुर के विद्यार्थी का जालस्थल मिला। वैसे उसमें अभी ज़्यादा मसला तो नहीं है, पर मुझे मज़ा आया उनके वैपत्रिक पते को देख के, कभी ऍट आई आई टी के डॉट एसी डॉट इन। कभी कभी, मेरे दिल में, ख़याल आता है।
शनिवार, अगस्त 30, 2003 09:13
 
लगता है सुबह उठ के व्यायाम, ध्यान आदि करने के ख़्वाब को भूल ही जाना चाहिए।
इतना समय हो गया है, एक दिन भी ०६०० बजे नहीं उठ पाया। धिक्कार है! गब्बर की इज़्ज़त मिट्टी में मिलती जा रही है।
कई दिनों से सोच रहा हूँ कि देवनागरी के संयुक्ताक्षरों की कुञ्जी बनाई जाए। इसकी मदद से हम मुद्रलिपियों को जाँच सकते हैं और यह अन्य लोगों के लिए भी लाभदायक होगी। यानी कि हरेक संयुक्ताक्षर के अलग अलग सम्भव रूप। क्या ख़याल है और इसे कैसे किया जा सकता है?
शुक्रवार, अगस्त 29, 2003 22:45
 
आजकल देख रहा हूँ कि इङ्ग्लैण्ड में काफ़ी हिन्दी के स्थल बन रहे हैं, जैसे कि ग्रीनविच मॅरीटाइम म्यूज़ियम का यह स्थल। या डार्विन सङ्ग्रहालय का स्थल। इङ्ग्लैण्ड ने डार्विन जैसे लोग पैदा करना बन्द क्यों कर दिया है?
गुरुवार, अगस्त 28, 2003 22:47
 
ब्लॉग की शकल बदल दी है, अक्षर भी बड़े कर दिए हैं। अब ठीक लग रहा है। बस पुरालेख वाले पन्ने बदलने हैं। चलो अब नौ दो ग्यारह होते हैं।
बुधवार, अगस्त 27, 2003 08:05
 
आज का अलार्म था ६ बजे का ही, और उठा ०७३० पर। कुछ तो सुधार है। कल देखते हैं क्या होता है। सोच रहा था कि विकीपीडिया वाले निष्पक्ष और पूर्वाग्रहरहित लेख कैसे पैदा कर पाएँगे, जब सभी लेख स्वयंसेवियों द्वारा ही लिखे गए हैं?
मंगलवार, अगस्त 26, 2003 15:26
 
ऑफ़िस से एक फ़ोन मिला है, नोकिया ३३१५। अब उसे हमेशा गले में लटका के घूमना पड़ेगा। लेकिन मज़े की बात यह है कि इसका सूचना पत्र यानी मॅनुअल और फ़ोन के सन्देश हिन्दी में भी हैं! चलो इस बहाने मुझे हिन्दी वाला फ़ोन तो मिल गया। इस बीच चीनियों ने हिन्दी चीनी भाई भाई शुरू कर दिया है।
सोमवार, अगस्त 25, 2003 08:07
 
नेपाल के मदन पुरस्कार पुस्तकालय(ऐसा नाम क्यों है? पुरस्कृत पुस्तकालय है या बन्दे का नाम मदन पुरस्कार है?) ने देवनागरी की दो
दो मुद्रलिपियाँ तैयार की हैं। देखने लायक हैं। दिखने में सुरेख से बेहतर तो नहीं हैं पर संयुक्ताक्षर इसमें बहुत सारे हैं। मुझे ङ्ग्र का संयुक्ताक्षर नहीं मिला, जो कि सुरेख में है। लेकिन सुरेख में "अङ्ग्रेज़ी" लिखने पर ङ्ग्रे और ज़ी के बीच खाली जगह आ जाती है, ऐसा इसमें नहीं है। यह मिला कैसे? मैंने गूगल पर भगवान को खोजा था
रविवार, अगस्त 24, 2003 13:06
 
जाल चिट्ठा, यानी वॅब्लॉग? शायद यह अनुवाद कैसा है? पता नहीं। वैसे मुझे तो सिर्फ़ चिट्ठा ही जम रहा है। तो इस चिट्ठे को आगे बढ़ाएँ। सी प्लस प्लस सवाल जवाब पर काम तो शुरू किया है, लेकिन मैं समझता हूँ कि पहले लिनक्स परिचय को निपटा ही देना चाहिए, उसके बाद किसी और चीज़ पर बढ़ें।
शनिवार, अगस्त 23, 2003 02:36
 
क्या करें नींद ही नहीं आ रही इसलिए लिख लेते हैं। कई गतिविधियों को कम करना पड़ेगा नहीं तो घर में हँगामा मच जाएगा। आज मैंने हिन्दी प्रदर्शन सहायता वाले पन्ने की ऍच टी ऍम ऍल की पुष्टि कर दी। तरीक़ा ढूँढ रहा था लिनक्स में रहते हुए विण्डोज़ की फ़ाइलें पढ़ने का लेकिन कुछ जुगाड़ अभी तक बन नहीं पाया। नॅटहोय जी से पत्र आया, अच्छा लगा। एक क्षेत्रीयकरण सम्बन्धी स्थल मिला है, और शुक्र है कि इसमें हिन्दी, मराठी आदि के विभाग भी हैं। और सहारा वालों ने एक समाचारों का यूनिकोडित स्थल बनाया है। बीबीसी के बाद यह पहला है।
ऐसा लगता है कि सब कुछ उस गति से नहीं हो रहा जिससे होना चाहिए लेकिन बूँद बूँद से ही घड़ा भरता है न।
बाकी फिर जब इस पन्ने की किस्मत खुलेगी, तब, फिलहाल होते हैं नौ दो ग्यारह।
बुधवार, अगस्त 06, 2003 07:29
 
दो दिल मिल रहे हैं, मगर चुपके चुपके।
मुझे लग रहा है कि मेरे शौकिया कामों और असली कामों के बीच का रास्ता मिल गया है। वह है सी प्लस प्लस। इसकी पढ़ाई शुरू कर रहा हूँ और उम्मीद है कि यह हिन्दी वाले कामों में भी काम आएगी।
मंगलवार, अगस्त 05, 2003 07:14
 
क्यों चलती है पवन, क्यों ...
अपना लिनक्स संस्थापन ठीक ठाक चल रहा है, अब तो मैं यह जानना चाहता हूँ कि ऍस टी ऍल की मदद से या सी लाइब्रेरी की मदद से यू टी ऍफ़ ८ अक्षरों को कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है। शायद wchar नाम की कोई चीज़ काम में आती है। और यूनिकोड में पचासों चीज़ें हैं, यू सी ऍस २, यू टी ऍफ़ ७ आदि, इन सब में क्या कहानी है पता करना है।
शुक्रवार, जुलाई 25, 2003 18:23
 
अच्छा तो अब पाँच मिनट तक जाल के तार टूटे हुए हैं, तो कुछ लिख लेते हैं।
अभी कल ही एक देवनागरी मुद्रलिपि मिली, जो कि प्रबुद्ध कालिया द्वारा बनाई गई है। बढ़िया है। गूगल जिन्दाबाद। सोच रहा हूँ कि बिना गूगल क्या ज़िन्दगी होगी। पर तब कुछ और होता, जिसके बिना ज़िन्दगी नहीं होती, इसलिए यह प्रश्न अवैध है।
देखो, ये जो नदी है, मिलने चली है, सागर ही को। दिल चाहता है का गाना। वैसे लगान फ़िल्म का जालस्थल देखा था। पूरा अङ्ग्रेज़ी में। अच्छा था।
सोचा था कि देवनागरी की चर्चा करने के लिए एक समूह होना चाहिए, जिसमें जाल पर देवनागरी के बारे में बातचीत हो सके, और यह बातचीत देवनागरी में हो। तरह तरह के लोगों से मिलने का मौका मिलेगा। पर इस स्थल का मकसद क्या होगा? मेरे हिसाब से इसका लक्ष्य होना चाहिए यूनीकोडित हिन्दी को बढ़ावा देना। या यूँ कहें कि मान्यता प्राप्त कूटबन्धनों को बढ़ावा देना। फ़िलहाल तो मान्यता प्राप्त केवल यूनीकोड ही है। धिक्कार है।
मगर जाल पर तो यूनीकोड ही चलेगा। जालराज लोग भी थक जाते हैं अलग अलग कूटबन्धन सँभालते सँभालते। तो इसका नाम क्या होना चाहिए, यानी इस डाकसूची का।
एक नाम तो ज़ाहिर ही है, वह है देवनागरी। उसके अलावा? इन्द्रजाल, अन्तर्जाल, क्या?
आपके सुझाव आमन्त्रित हैं।
गुरुवार, जुलाई 24, 2003 19:56
 
कहीं दूर जब दिन ढल जाए, साँझ की दुल्हन ... गाना बज रहा है, और मैं लिख रहा हूँ ब्लॉग। यार ब्लॉग की हिन्दी क्या होगी? अभी तक नहीं सोच पाया। चलो दूसरी तरह से सोचते हैं, मैं अपनी दादी को कैसे समझाऊँगा कि यह क्या है? मशीनी डायरी?
शायद। वैसे दोनो शब्द अङ्ग्रेज़ी के हैं।
लगता है मोज़िला में --enable-ctl जल्दी ही विण्डोज़ के लिए भी ठीक हो जाएगा, देखिए इस त्रुटि को। इसके बाद अग़र कोई दिक्कत होगी तो वह होगी सन की देवनागरी मुद्रलिपि की वजह से। उसमें भी कुछ त्रुटियाँ हैं। जैसे कि क्क के बदले खाली जगह ही आती है। पर कम से कम इस्तेमाल करने लायक तो हो जाएगा।
क्या वह दिन आएगा जब एक भी अङ्ग्रेज़ी का अक्षर न जानने वाला इंसान भी बेधड़क सङ्गणक यानी कम्प्यूटर का इस्तेमाल कर सके? फ़िलहाल तो वह समय बहुत दूर है।
नौ दो ग्यारह होने के पहले आएगा क्या? पता नहीं।
मुझे लगता है कि जिस दिन हमने कुञ्जीपटल यानी कीबोर्ड से निजात पा ली वह दिन बहुत बड़ा दिन होगा। या तो हाथ से लिखो, या बोल के बताओ कि तुम क्या काम करवाना चाहते हो। आज एक दुकान पर पुराने किस्म का टाइपराइटर देखा। बाप रे, क्या मेहनत लगती थी। खट खट, खटा खट। ऐसा लगा कि यह कौन से युग का यन्त्र है?
पता चला कि विकिपीडिया पर भी हिन्दी में काम शुरू हो गया है। लगता है अब समय आ गया है कि एक डाक सूची बनाई जाए जिसपर हिन्दी में जाल पर चर्चा हो। क्योंकि सब लोगों को बार बार वही दिक्कत आती है। वैसे तो लिनक्स के लिए एक डाक सूची है, लेकिन हर कोई तो लिनक्स पर काम नहीं करता। और दूसरी डाक सुचियाँ हिन्दी सीखने के लिए हैं या साहित्यिक हैं। इतना ही नहीं इनमें अङ्ग्रेज़ी में लिखी डाक ही ज़्यादा है। तो क्या ख़याल है? डीमोज़ का अपना मञ्च भी है, लेकिन सम्पादकों के लिए ही। यूज़्नॅट पर लेख लिखना, भी एक विकल्प हो सकता है, लेकिन कई लोग अपनी डाक में पत्र पाना पसन्द करते हैं। इसलिए लग रहा है कि एक डाक सूची का ज़रूरत है जो कि अन्तर्जाल पर काम की चर्चा करने में सहायक हो।
चलो भइया अब उठाते हैं बोरिया बिस्तर, अगले तीन दिन बहुत ज़रूरी काम करने हैं इसलिए मैं सङ्गणक से दूर ही रहूँगा।


रविवार, जुलाई 20, 2003 17:27
 
यार टिप्पणियाँ तो आई ही नहीं। अब देखते हैं कि क्या हुआ है। इस बीच मुझे तमिल में एक ब्लॉग मिला। बढ़िया है।
 
हूँ, बड़े दिनो बाद। ख़बर यह है कि --enable-ctl के साथ मोज़िला चल गया। और यह दिखता भी बढ़िया है। आप भी चला के देखें। वैसे मैं इसे विण्डोज़ पर चला के नहीं देख पाया हूँ अभी तक, अग़र चल गया तो बढ़िया हो जाएगा क्योंकि ज़्यादातर लोग तो विण्डोज़ 98 का इस्तेमाल ही करते हैं।
बुधवार, जुलाई 09, 2003 18:03
 
वीवडायल का मसला तो सुलझ गया अब, यानी केपीपीपी की मदद से वही काम हो रहा है जो मैं wvdial से करता था, तो ठीक है, चलेगा, कोई चक्कर नहीं। अब आगे बढ़ना है --enable-ctl के साथ।
और मैंने देवनागरी लिपि के बारे में लिखना शुरू किया है, यदि कोई त्रुटियाँ हौ तो बताएँ।
सब कुछ हिन्दी में करने में बड़ा मज़ा आता है, विपत्र, समाचार पाठक, और ब्लॉग। एक मोहन सेवक जी के बारे में पता चला है, जो कि हिन्दी की हिमायत अङ्ग्रेज़ी में लेख लिख कर करते हैं।
आजकल बङ्गलोर में मौसम बहुत बढ़िया है, लेकिन रोज रोज मौसम अच्छा ही होता है इसलिए उसका आभास ही नहीं होता।
तकनीकी काम करते वक़्त ऐसा लगने लगा है कि क्या मैं सही दिशा में जा रहा हूँ? मेरा रेस्युमे कहता है कि मै प्रॉजॅक्ट लीडर हूँ। यानी उसके हिसाब से मुझे और तरह के काम करने चाहिए। मैं जो काम पसन्द करता हूँ वह है प्रोग्रामिङ्ग का। लेकिन प्रोग्रामिङंग अब कहाँ हो पाती है इतनी। बल्कि जो कुछ मुझे पहले आता था वह भी मैं भूलता जा रहा हूँ। क्या निजात है इस चक्रव्यूह से, पता नहीं। खाली समय में मैं जो कर रहा हूँ वह बिल्कुल अलग है, हिन्दी से सम्बन्धित। उसीमें सबसे ज़्यादा मज़ा भी आता है। तो उपाय यह है कि फटाफट इतने पैसे कमा लो कि दिन भर हिन्दी वाला काम कर सको। या और क्या? पता नहीं।
लहरों के झोंको के साथ बहता ही जा रहा हूँ, क्योंकि मुझे लगता है कि अग़र कुछ करने की ठानी और वह नहीं हुआ तो क्या होगा। है न रद्दीपन की निशानी? लेकिन कुछ तो मन बनाना ही पड़ेगा। पर इस शनिवार को मैं --enable-ctl कर के ही छोड़ूँगा। पता करना पड़ेगा कि इसके लिए कितना समय लगेगा, डायलप के साथ।
कहता है दिल, कि आराम करना है, लेकिन दुनिया कहती है कि कुछ करो तभी नौ दो ग्यारह होओ।
शनिवार, जुलाई 05, 2003 12:30
 
अरे वाह, ब्ल़ॉग्स्पॉट पर अब हिन्दी में तिथि भी आने लगी है। बढ़िया है।
छुट्टी से लौटा, अब हज़ार काम हैं, घर पर और बाहर भी।
अभी तक मोज़िला पर --enable-ctl की खोजबीन नहीं हो पाई है।
आई ऍस पी ने फ़ोन नम्बर क्या बदला, लिनक्स में वीवड़ायल(wvdial) चलना ही बन्द हो गया है। तीन बार प्रवेश शब्द पूछता है और उसके बाद टपक जाता है। इसलिए यह विण्डोज़ से लिख रहा हूँ। हर समय कोई न कोई समस्या लगी ही रहती है।
एक और चीज़ है कि इसका फॉँण्ट बड़ा करना है।
इण्डिक कम्प्यूटिङ्ग कुछ लिखने का वादा किया था, उसे भी पूरा करना है। वादे, वादे, वादे, और उम्मीदें। बस इन्हीं के बीच में फँसा रह जाता है इंसान। और फिर हो जाता है नौ दो ग्यारह।
गुरुवार, जून 19, 2003 19:40
 
कॉङ्क्वरर की भी खोजबीन करनी है, सुना है कि क्यू टी 3.2 में देवनागरी के लिए अच्छा जुगाड़ है।
 
मुबारक हो, बाल्सा चल पड़ा, और समाचारपाठक पॅन भी। अब तो सब कुछ जम चुका है, बस केवल ब्राउज़र में --enable-ctl करके देवनागरी प्रदर्शन ठीक करना है। यानी मोजिला में। वैसे मोज़िला का रिलीज़ कॅण्डिडेट 2 प्रकाशित हो चुका है।
सोमवार, जून 16, 2003 18:37
 
लगता है बाल्सा का नया उद्धरण लेना पड़ेगा। मिलन लगाने के बाद गॅडिट तो सही चल रहा है देवनागरी के साथ लेकिन बाल्सा 1.2.4 नहीं चलता, जो कि रॅड हॅट 8 के साथ आता है।
शायद बाल्सा 2.0 ठीक से चले, कम से कम गूगल भइया तो यही कह रहे हैं।
हाँ, मिल गया, 15 सितम्बर 2002 के बाल्सा 2.0.2 से देवनागरी ठीक हुई है। अभी का बाल्सा तो 2.0.9 है। तो आज का काम तय हो गया, नए बाल्सा को संस्थापित करना।
चलो भइया हो जाएँ नौ दो ग्यारह।
शुक्रवार, जून 13, 2003 02:11
 
मिलन पर आजकल खोजबीन चल रही है। अभी तक तो रॅड हॅट 7.1 पर इण्डिक्स का इस्तेमाल कर रहा था, लेकिन उसमें मोटे व तिरछे अक्षर नहीं आते। तो सोचा कि ग्नोम 2 पर जो पॅङ्गो है उसका इस्तेमाल कर के देखा जाए। अभी स्थापित तो कर दिया है लेकिन हिन्दी के कुञ्जीपटल पर पहुँचने के बजाय एक त्रुटि देता है। कहीं यह इण्डिक्स संस्थापन का कोई अवशेष तो नहीं जो कि ठीक करना पड़ेगा? देखते हैं, 2 बज कर 20 मिनट हो गए यानी नौ दो ग्यारह होने का समय आ गया।
बुधवार, जून 04, 2003 10:10
 
बड़े दिनों बाद एक दोस्त से चिट्ठी आई, यानी कि विपत्र, कागज़ी चिट्ठी कौन लिखता है आजकल? तो पता चला उसकी शादी होने वाली है। तो बढ़िया है। लेकिन लगा कि बहुत समय हो गया है, मेरे सी डॅक के कोर्स को किए हुए। चार साल से भी ज़्यादा। अब तो कुछ और नया करना चाहिये। पिछले कुछ महीनों से ज़िन्दगी थमी थमी सी लग रही है, जैसे कि कुछ होने के इन्तज़ार में और सब चीज़ों को थाम दिया हो। देखते हैं कि आगे क्या होता है। नौ दो ग्यारह होने के पहले कुछ तो करना ही पड़ेगा न।

सोमवार, जून 02, 2003 23:10
 
चलिए लिखते हैं ब्लॉग, बड़ा समय हो गया है।
मैंने रॅड हॅट 7.1 से 8.0 को बढ़ने की कोशिश की तो ऐसा लफ़ड़ा हुआ कि अब आई पी तो पिङ्ग होते हैं लेकिन डोमेन नाम विश्लेषण नहीं होता। यानी कि जाल से बिल्कुल कटे हुए।
खैर बहुत हाथ पैर मारने पर पता चला कि आई पी टेबल्स और आई पी चेंस का कुछ गड़बड़झाला है। 7.1 में आई पी चेंस था, और 8.0 में सभी स्क्रिप्ट आई पी टेबल्स के हिसाब से हैं, लेकिन क्योंकि पहले से आई पी चेंस था इसलिए आई पी टेबल्स संस्थापित न हो के आई पी चेंस का ही नया उद्धरण स्थापित हो गया। मगर सारी स्क्रिप्ट, जैसे कि ifup और ifup-post तो आई पी टेबल्स वाली हैं! तो फँस गए न।
अन्त में जा के एक जगह से पता चला है कि आई पी टेबल्स मॉड्यूल्स को स्थापित करना पड़ेगा। उसके लिए रॅड हॅट 8.0 की सी डी फिर से चाहिए होगी। यानी 2 दिन और गए। हद होती है।
गुरुवार, मई 01, 2003 18:05
 
अङ्ग्रेज़ी हिन्दी तकनीकी शब्दकोष


अब तो काफ़ी महारत हो गई है इंस्क्रिप्ट में। पर थोड़े और अभ्यास की तो आवश्यकता है ही। इण्ड लिनक्स पर मुद्दा उठा शब्दकोषों का, तो भई अब तो बहुत सारे हो गए हैं, एक आम शब्दकोष
यह है, और यह है
इण्ड लिनक्स का कोष। एक और जो जाल पर है,
और यह ओपन ऑफ़िस का।



इन सब को मिला के एक बृहद कोष होना चाहिए जो कि अधिभारित यानी डाउनलोड भी किया जा सके और जाल पर भी देखा जा सके। साथ ही खोज की सुविधा और सुझाव देने की सुविधा भी हो। इसी बात पर यहाँ चर्चा हो रही है।


बुधवार, अप्रैल 23, 2003 09:58
 
नमस्ते।


अब तो मुझे चस्का लग चुका है लिखने का। अभी बजे हैं 9:30, देखते हैं अब कितनी देर लगेगी।


कल के लेख में कई जगह ब की जगह व छप गया था, क्योंकि व वाली कुञ्जी बी की है और मुझे उसीकी आदत थी।


ब्राउज़र में जब पढ़ते हैं तो ऊपर नीचे वाली पङ्क्तियाँ एक दूसरे से लड़ जाती हैं, ख़ासतौर पर मात्राओं वाली जगह पर। लेकिल नोटपॅड में ऐसा नहीं होता, यहाँ जगह काफ़ी छोड़ी हुई है।


क्योंकि चस्का लगा हुआ है, इसलिये लिख रहा हूँ। पर कितने दिन लगा रहेगा, वह पता नहीं।


कल ही मुझे पता चला कि रीडिफ़ के भी ब्लॉग हैं। लेकिन मुआफ़ करना, एक और ब्लॉग बनाने का माद्दा हममें नहीं है।


अरे इतनी जल्दी 9 2 11 होने का समय आ गया? 25 मिनट बीत चुके हैं लिखना शुरू किए। फ़िर मिलते हैं।




मंगलवार, अप्रैल 22, 2003 17:35
 
क्या लिखें, कोई ज़वर्दस्ती है क्या?
पर लिख ही लेते हैं, इसी बहाने इंस्क्रिप्ट की कवायद भी हो जाएगी। वैसे कवायद का मतलब क्या होता है? दरअसल मैं जिस शब्द को तलाश रहा था वह है रियाज़। आज लिखने का काम 5 वजे शुरू किया है, देखते हैं कितनी देर में पूरा होता है। यार इंस्क्रिप्ट तो मार ही देगा। पता नहीं इसके बाद अङ्ग्रेज़ी लिख पाऊँगा कि नहीं। हिन्दी में अनुस्वार कुछ ज़्यादा ही हैं, और ह, य अक्षर भी। इनको बीच वाली पङ़क्ति में रखना चाहिये था। पर कोई गल नहीं, एक बार आदत पड़ गई तो कोई चक्कर ही नहीं। कव वनेगी मुद्रलिपि जिसमें ङ्क, ट्ट, ट्ठ के संयुक्ताक्षर हों? भइया मुद्रलिपि बनाना टेढ़ी खीर है, कोई महान इंसान बना दे तो बना दे। हिन्दी पढ़ के आप फट से पता लगा सकते हैं कि लिखने वाला कहाँ का रहने वाला है। बोली, लहज़ा, शैली तुरन्त किसी क्षेत्र की ओर आपकी उँगली पहुँचा देगी।
किसी अखबार के किसी लेख को इंस्क्रिप्ट में लिख के देखना चाहिए कि कितने अक्षर किस किस पङ्क्ति में आते हैं। अरे कमाल है, पिछली बार पङ्क्ति लिखा तो ठीक छपा, लेकिन ऊपर तो पङ़क्ति छपा था। चक्कर क्या है?
चलिए 5:18 हो गए, पूरे बीस मिनट लग गए लिखने में। हिन्दी की गिनती नहीं छप रही, इसका भी जुगाड़ ढूँढना पड़ेगा।


? छापने के लिए भी कुञ्जी बदलनी पड़ती है, अब हम हो रहे हैं नौ दो ग्यारह।

सोमवार, अप्रैल 21, 2003 22:21
 
चलिये अब ब्लॉग बना लिया है तो कुछ लिखा भी जाए इसमें।
वैसे ब्लॉग की हिन्दी क्या होगी? पता नहीं। पर जब तक पता नहीं है तब तक ब्लॉग ही रखते हैं, पैदा होने के कुछ समय बाद ही नामकरण होता है न।
पिछले ३ दिनों से इंस्क्रिप्ट में लिख रहा हूँ, अच्छी खासी हालत हो गई है उँगलियों की और उससे भी ज़्यादा दिमाग की। अपने बच्चों को तो पैदा होते ही इंस्क्रिप्ट पर लगा दूँगा, वैसे पता नहीं उस समय किस चीज़ का चलन होगा।


काम करने को बहुत हैं, क्या करें क्या नहीं, समझ नहीं आता। बस रोज कुछ न कुछ करते रहना है, देखते हैं कहाँ पहुँचते हैं।


अब होते हैं ९ २ ११, दस बज गए।

 
जम गया
 
यू टी ऍफ़ ८ ठीक नहीं है।
 
अब कैसा है?
 

बड़ा कैसे करें?
 
लगता है यह अक्षर छोटे हैं।
 
नमस्ते।
क्या आप हिन्दी देख पा रहे हैं?
यदि नहीं, तो यहाँ देखें।

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